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निदेशक का संदेश एवं दृष्‍टि

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केंद्रीय रेशम उत्पादन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान, मैसूर में आपका स्वा‍गत है।  वर्ष 1961 में संस्थापित इस प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संस्थान ने कुछ ही वर्षों में उत्कृष्ट केंद्र के रूप में अपनी पहचान बना ली और दक्षिण पूर्वी एशिया में उष्णकटिबंधीय रेशम उत्पादन पर अनुसंधान के लिए  अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।

भारतीयों की परंपरा एवं संस्‍कृति के साथ रेशम जुडा  हुआ है। वास्‍तव में यह लाखों लोगों की आजीविका का साधन है । रेशम उत्‍पादन - ग्रामीण, रोजगार उन्मुख, लाभदायक उद्यम है जो राष्‍ट्र के सामाजिक - आर्थिक विकास  में मुख्‍य भूमिका अदा करता है । विदेशी मुद्रा  प्राप्त होने के कारण, रेशम उद्योग  को आज की बदलती विश्‍व विपणन प्रवृत्‍तियों की चुनौतियों का सामना करने के लिए गुणवत्‍तापूर्ण रेशम उत्‍पादित करते हुए बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए। केंरेअप्रसं, मैसूरु ने देश में विशेषकर परंपरागत (कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना एवं तमिलनाडु) और गैर परंपरागत (मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व गुजरात) राज्यों में शहतूत रेशम उत्पादन को बढावा देने के लिए प्रौद्योगिकियां विकसित करने तथा कृषकों को उच्च आय सुनिश्चित  करने हेतु रेशम उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढाने हेतु सराहनीय कार्य किया है। संप्रति कें रे अ प्र सं 40 एकड शहतूत क्षेत्र सहित 135 एकड़ में फैला हुआ है । कें रे अ प्र सं, मैसूर के  शहतूत संवर्धन, रेशम कीटपालन, रेशम उत्‍पादन अभियांत्रिकी, विस्‍तारण, अर्थशास्‍त्र एवं प्रशिक्षण जैसे विभिन्‍न सुसज्‍जित अनुभागों में समर्पित वैज्ञानिक कार्यरत हैं । इसके अलावा इस संस्‍थान का बहुत बड़ा विस्‍तारण तंत्र है जिसमें परंपरागत एवं गैर परंपरागत क्षेत्रों में व्याप्त 5 क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र,19 विस्‍तारण केंद्र/उप-एकक और 2 प्रजनन केंद्र शामिल हैं ।

 

 इस संस्‍थान ने अपनी सुविकसित रेशम उत्‍पादन अवसंरचना और देशी प्रौद्योगिकी  आधार के साथ उष्‍णकिटबंधीय रेशम उत्‍पादन में अग्रणी अनुसंधान एवं विकास संस्‍थान के रूप में अपनी पहचान बना ली है । प्रयोगशाला से क्षेत्र और क्षेत्र से प्रयोगशाला की संकल्‍पनाओं को अपनाते हुए यह कृषि क्षेत्र की आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि क्षेत्र के कार्यकलापों के सभी पहलुओं को सम्‍मिलित करते हुए मृदा से कोसा उत्‍पादन तक शहतूत रेशम उत्‍पादन के सभी पहलुओं पर अनुसंधान करता है । 

 

संस्‍थान द्वारा विकसित उष्‍णकटिबंधीय प्रौद्योगिकी प्रणाली ने कोसा / रेशम उत्‍पादन का कायापलट कर दिया है । इस प्रणाली को अपनाने पर रेशम उत्‍पादन की संकल्‍पना ही बदल गई । कुटीर उद्योग के रूप में समझा जाने  वाला रेशम उत्‍पादन पूर्ण विकसित उद्योग में परिणत हो गया। संस्‍थान द्वारा विकसित उन्नत द्विप्रज रेशमकीट संकर FC21xFC2, V1,G4 जैसी शहतूत उपजातियाँ, चॉकी कीटपालन, प्ररोह कटाई विधि, समग्र कार्य प्रणली, रोग प्रबंधन कार्यनीतियाँ आदि ने रेशम उत्‍पादन को न केवल नया आयाम दिया, बल्‍कि देश को उष्‍णकटिबंधीय स्‍थितियों में गुणात्‍मक रेशम उत्‍पादित करने में सक्षम बनाया । पिछले पाँच दशकों में रेशम उत्‍पादकता और गुणवत्‍ता में व्‍यापक वृद्धि हुई है । 

 

संस्‍थान की विस्‍तारण कार्यनीतियों में साझेदारी, विकेंद्रित, बाज़ार उन्‍मुख, सूचना आधारित एवं आवश्‍यकता अनुरूप समग्र दृष्‍टिकोण सम्‍मिलित हैं । इन्‍होंने समय-समय पर प्रौद्योगिकियों  को कृषकों तक पहुँचाने में सहायता की है । सी पी पी जैसे विस्‍तारण कार्यक्रमों ने भारतीय रेशम उत्‍पादन को नया आयाम दिया । यह संस्‍थान विभिन्‍न राज्‍यों में स्‍थित क्षेत्रीय रेशम उत्‍पादन अनुसंधान केंद्र, अनुसंधान विस्‍तारण केंद्र, अनुसंधान विस्‍तारण उपएककों- उत्‍कृष्‍ट विस्‍तारण तंत्र-से विकसित प्रौद्योगिकियों को पणधारियों तक पहुँचाता है । संस्थान को राष्ट्रीय अनुसंधान विकास परिषद के साथ पंजीकृत 26 एकस्व प्राप्त हुए हैं और उन क्षेत्रों के रेशम उत्पादकों के हितलाभ के लिए 39 उत्पादों को वाणिज्यीकरण किया है।

 

संस्थान ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उच्च शिक्षा एवं उन्नत प्रशिक्षण केंद्र के रूप में भी अपनी पहचान बना ली है। हर वर्ष काफी संख्या में लाभार्थियों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संरचित और असंरचित पाठ्यक्रमों के माध्यम से रेशम उत्पादन के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

 

शहतूत / रेशमकीट प्रजातियों की उच्‍च उत्‍पादकता एवं प्रौद्योगिकियों के परिष्‍करण हेतु संस्‍थान सतत प्रयासरत है । यह संस्‍थान अनुसंधान व विकास के प्रमुख और उत्‍कृष्‍ट संस्‍थान के रूप में परिणत हुआ है जिसने वर्ष 2011 में अपनी स्‍वर्ण जयंती मनाई । संस्‍थान ने राष्‍ट्र के परंपरागत और अपरंपरागत रेशम उत्पादन राज्यों को  सराहनीय समर्थन देते हुए देश के कुल रेशम उत्‍पादन में बड़ा योगदान दिया है।

 

                                                                                              डॉ.दीपा.पी   

                                                                                                       निदेशक