Send by emailPDF versionPrint this page
निदेशक का संदेश एवं दृष्‍टि

Limited Edition Converse High Tops Converse Limited Edition Shoes Malaysia 1CK5731 Converse Disney Crossover Centennial Limited Limited Edition Converse High Tops Converse Limited Edition Shoes Malaysia 1CK5731 Converse Disney Crossover Centennial Limited
Maroon Aj4 For Sale Air Jordan 4 NRG Hot Punch Maroon Aj4 For Sale Air Jordan 4 NRG Hot Punch
   
   
उत्‍कृष्‍ट प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संस्‍थान - केंद्रीय रेशम उत्‍पादन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्‍थान,  मैसूर में स्‍वागत । भारतीयों की परंपरा एवं संस्‍कृति के साथ रेशम जुडा  हुआ है। वास्‍तव में यह लाखों लोगों की आजीविका का साधन है । रेशम उत्‍पादन - ग्रामीण आधारित, रोजगार प्रदान करने वाला, लाभदायक उद्यम है जो राष्‍ट्र के सामाजिक - आर्थिक विकास  में मुख्‍य भूमिका अदा करता है । इससे विदेशी मुद्रा भी अर्जित की जाती है, आज की बदलती विश्‍व विपणन प्रवृत्‍तियों की चुनौतियों का सामना करने के लिए रेशम उद्योग को गुणवत्‍ता रेशम उत्‍पादित करते हुए उत्‍कृष्‍ट बनना है । 
 
दक्षिण भारत में रेशम उत्‍पादन की उत्‍पत्‍ति और वृद्धि टिप्‍पू सुल्‍तान द्वारा  मैसूर राज्‍य में किए गए आधिकारिक प्रयोग एवं उन्‍नयन से हुई है । पूर्व मैसूर राज्‍य के तत्‍कालीन शासक  द्वारा वर्ष 1780  एवं 1790 के बीच इसको व्‍यवस्‍िथत ढंग से विकसित किया गया । बाद में भी यह समर्थन मैसूर शासकों द्वारा ज़ारी रखा गया और कृष्‍णराज ओडेयर के शासन में उद्योग का विकास एवं उन्‍नयन हुआ ।
 
उष्‍णकटिबंधीय क्षेत्रों में ऐसे विकासशील प्रयासों को ज़ारी रखने और अनुसंधान कार्य करने हेतु वर्ष 1955 में मैसूर सरकार द्वारा चन्‍नपट्टणा में केंद्रीय रेशम उत्‍पादन अनुसंधान एवं  प्रशिक्षण संस्‍थान संस्‍थापित किया गया । बाद में वर्ष 1958 के दौरान दक्षिण भारत में रेशम उत्‍पादकों की प्रशिक्षण माँग को पूरा करने हेतु केंद्रीय रेशम बोर्ड द्वारा मैसूर में अखिल भारतीय रेशम उत्‍पादन प्रशिक्ष्‍ाण संस्‍थान की स्‍थापना की गई । वर्ष 1961 में केंद्रीय रेशम बोर्ड के केंद्रीय रेशम उत्‍पादन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्‍थान, चन्‍नापट्टणा को लेने के बाद केंद्रीय रेशम उत्‍पादन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्‍थान, मैसूर स्‍थापित करने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई । बाद  में वर्ष 1964-65 के दौरान अखिल भारतीय रेशम उत्‍पादन प्रशिक्षण संस्‍थान, मैसूर केंद्रीय रेशम अनुसंधान संस्‍थान से मिलकर केंद्रीय रेशम उत्‍पादन अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्‍थान, मैसूर बना । 
 
कुछ ही वर्षों में यह पूर्ण विकसित उत्‍कृष्‍ट केंद्र बन गया और दक्षिण पूर्वी एशिया में उष्‍णकटिबंधीय रेशम  उत्‍पादन के लिए  अंतर्राष्‍ट्रीय ख्‍याति प्राप्‍त प्रमुख अनुसंधान संस्‍थान के रूप में विकसित हुआ । इसने रेशम उत्‍पादकता एवं गुणवत्‍ता बढ़ाने हेतु सराहनीय समर्थन प्रदान किया जिससे कृषकों को अधिक आय प्राप्‍त होना सुनिश्‍चित हुआ । संप्रति कें रे अ प्र सं परिसर 25.84 हेक्‍टार शहतूत क्षेत्र सहित 53.60 हेक्‍टार में फैला हुआ है । कें रे अ प्र सं, मैसूर की सुसज्‍जित प्रयोगशालाओं में शहतूत कृषि, रेशम कीटपालन, रेशम उत्‍पादन अभियांत्रिकी, विस्‍तारण, अर्थशास्‍त्र एवं प्रशिक्षण  जैसे विभिन्‍न क्षेत्रों में समर्पित वैज्ञानिक कार्यरत हैं । इसके अलावा इस संस्‍थान का बहुत बड़ा विस्‍तारण तंत्र है जिसमें कर्नाटक, आँध्र प्रदेश, तमिल नाडु, केरल, महाराष्‍ट्र एवं मध्‍यप्रदेश में 4 क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र एवं 33 विस्‍तारण केंद्र/उप-एकक और 2 प्रजनन केंद्र व्‍याप्‍त हैं । 
 
इस संस्‍थान ने अपनी सुविकसित रेशम उत्‍पादन अवसंरचना और देशीय विकसित प्रौद्योगिकी  आधार के साथ उष्‍णकिटबंधीय रेशम उत्‍पादन में अग्रणी अनुसंधान एवं विकास संस्‍थान के रूप में अपनी पहचान  बना ली है । प्रयोगशाला से क्षेत्र और क्षेत्र से प्रयोगशाला की संकल्‍पनाओं को अपनाते हुए यह कृषि क्षेत्र की आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि क्षेत्र के कार्यकलापों के सभी पहलुओं को सम्‍मिलित करते हुए मृदा से कोसा उत्‍पादन तक शहतूत रेशम उत्‍पादन के सभी पहलुओं पर अनुसंधान करता है । 
 
संस्‍थान द्वारा विकसित उष्‍णकटिबंधीय प्रौद्योगिकी प्रणाली ने कोसा / रेशम उत्‍पादन का कायापलट कर दिया है । इस प्रणाली को अपनाने पर रेशम उत्‍पादन की संकल्‍पना ही बदल गई । कुटीर उद्योग के रूप में समझा जाने  वाला रेशम उत्‍पादन पूर्ण विकसित उद्योग में परिणत हो गया। संस्‍थान द्वारा विकसित द्विप्रज रेशमकीट संकर यथा सी एस आर 2, सी एस आर 4,  वी 1 जैसी शहतूत उपजातियाँ, समग्र कार्य प्रणली, रोग प्रबंधन कार्यनीतियाँ आदि ने रेशम उत्‍पादन को न केवल नया आयाम दिया, बल्‍कि देश को उष्‍णकटिबंधीय स्‍थितियों में गुणात्‍मक रेशम उत्‍पादित करने में सक्षम बनाया । पिछले पाँच दशकों में रेशम उत्‍पादकता और गुणवत्‍ता में व्‍यापक वृद्धि हुई है । 
 
संस्‍थान की विस्‍तारण कार्यनीतियों में साझेदारी, विकेंद्रित, बाज़ार उन्‍मुख, सूचना आधारित एवं आवश्‍यकता अनुरूप दृष्‍टिकोण सम्‍मिलित हैं । इन्‍होंने समय-समय पर प्रौद्योगिकियों  को कृषकों तक पहुँचाने में सहायता की है । स्‍िवस से सहायता प्राप्‍त इक्‍ट्रेट्स एवं जापान अंतर्राष्‍ट्रीय सहकारिता अभिकरण कार्यक्रमों के अलावा रेशम उत्‍पादन परियोजना, सी डी पी, सी पी पी आदि के माध्‍यम से कें रे बो द्वारा  पूर्ण समर्थित विस्‍तारण कार्यक्रमों - सं. ग्रा. सं का, स सं का आदि ने भारतीय रेशम उत्‍पादन के आयाम को परिवर्तित किया । यह संस्‍थान विभिन्‍न राज्‍यों में स्‍थित क्षेत्रीय रेशम उत्‍पादन अनुसंधान केंद्र, अनुसंधान विस्‍तारण केंद्र, अनुसंधान विस्‍तारण उपएककों- उत्‍कृष्‍ट विस्‍तारण तंत्र-से विकसित प्रौद्योगिकियों को पणधारियों तक पहुँचाता है । 
 
संस्‍थान ने राष्‍ट्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर उच्‍च अध्‍ययन एवं विकसित प्रशिक्षण केंद्र के रूप में पहचान बना ली है । 
 
शहतूत / रेशमकीट प्रजातियों की उच्‍च उत्‍पादकता एवं प्रौद्योगिकियों के परिष्‍करण हेतु संस्‍थान सतत प्रयासरत है । यह संस्‍थान अनुसंधान व विकास के प्रमुख और उत्‍कृष्‍ट संस्‍थान के रूप में परिणत हुआ है जिसने वर्ष 2011 में अपनी स्‍वर्ण जयंती मनाई । संस्‍थान द्वारा प्रदत्‍त सराहनीय समर्थन के कारण ही आज राष्‍ट्र के कुल रेशम उत्‍पादन का बड़ा योगदान (90 %) दक्षिण राज्‍यों का है ।

 निदेशक